कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित, जीवन परिचय व जयंती | Kabir ke Dohe and Poem Jayanti in hindi - MyAlfaaz

Latest

MyAlfaaz - The Library of Quotes.

Sunday, March 14, 2021

कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित, जीवन परिचय व जयंती | Kabir ke Dohe and Poem Jayanti in hindi

कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित, जीवन परिचय व जयंती ( Kabir ke Dohe and Poem Jayanti in Hindi)


Kabir ke Dohe and Poem Jayanti in hindi



कबीर शब्द का शाब्दिक अर्थ मुस्लिम धर्म इस्लाम के अनुसार महान होता है. वह एक बहुत बड़े अध्यात्मिक पुरुष थे जोकि साधू का जीवन बिताने लगे, उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व और अध्यात्मिकता के कारण उन्हें पूरी दुनिया की प्रसिद्धि प्राप्त हुई. कबीर जी हमेशा जीवन के कर्म करने में विश्वास करते थे उन्होंने कभी भी अल्लाह और राम के बीच भेद नहीं किया, उनका मत था की अल्लाह और राम एक ही परमात्मा के दो अलग - अलग नाम हैं. उन्होंने हमेशा अपने उपदेशो में इस बात का जिक्र करते लोगों को ऊच - नीच, धर्म - अधर्म मतों को नकारते हुए भाईचारे के एक धर्म को मानने के लिए प्रेरित किया. अपने लेखन से कबीर दास जी ने भक्ति आन्दोलन को चलाया है. कबीर जी के नाम पर कबीर पंथ नामक एक धार्मिक समुदाय है, जो कबीर के अनुयायी है उनका माना है कि उन्होंने संत कबीर सम्प्रदाय को अपनाया है और इस सम्प्रदाय के लोगों को कबीर पंथी कहा जाता है जो कि पुरे देश में फैले हुए है. 


कबीर दास जीवन परिचय :-

  • जन्म : - 1440 वाराणसी
  • मृत्यु :- 1518 मघर
  • प्रसिद्धी :- कवी, संत
  • धर्म :- इस्लाम
  • रचना :- कबीर ग्रन्थावली, अनुराग सागर, सखी ग्रन्थ,बीजक

कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित   (Kabir ke dohe Meaning in Hindi)

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय.


अर्थ : जब मेने इन संसार में बुराई को ढूढा तब मुझे कोई बुरा नहीं मिला जब मेने खुद का विचार किया तो मुझसे बड़ी बुराई नहीं मिली . दुसरो की अच्छाई बुराई देखने वाला व्यक्ति कभी भी खुद को नहीं जान सकता . जो दुसरो में बुराई ढूंढता है सही नजरिये से देखा जाये तो वहीँ व्यक्ति सबसे बड़ी बुराई है .



पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय.

अर्थ : उच्च ज्ञान की प्राप्ति करने पर कोई विद्वान् नहीं हो जाता . अक्षर ज्ञान होने के बाद भी अगर उसका महत्त्व ना जान पाए, ज्ञान की करुणा को जो जीवन में न उतार पाए  तो वो अज्ञानी ही है लेकिन जो प्रेम की भाषा जान गया वह बिना अक्षर ज्ञान के विद्वान हो जाता है.


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय.

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस दुनियाँ में हम जो भी करना चाहते हैं वह कभी भी समय से पहले नहीं मिलता, वो धीरे-धीरे ही होता हैं, अर्थात कर्म के बाद फल क्षणों में नहीं मिलता जैसे एक माली के द्वारा किसी पौधे में सो घड़े पानी देने पर भी पौधा फल नहीं देता, जब तब तक की पौधे के फल लगने की ऋतू न आये .

धेर्य ही जीवन का आधार हैं, जीवन के हर दौर में धेर्य रखना जरुरी है फिर चाहे वह विद्यार्थी जीवन हो, या चाहे वैवाहिक जीवन हो या चाहे व्यापारिक जीवन हो. 


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान.

अर्थ : कबीर कहते हैं की किसी भी इंशान की जाति से उसकी विद्या का बोध नहीं किया जा सकता , किसी इंशान की सरलता का अंदाजा भी उसकी जाति से नहीं लगाया जा सकता अतः इंसान से उसकी जाति पूछना व्यर्थ है उसकी विद्या और व्यवहार ही अमूल्य है. जैसे किसी तलवार की पहचान उसकी धार से है पर म्यान का कोई महत्व नहीं, म्यान मात्र उसका उपरी आवरण  है वैसे जाति भी मनुष्य का केवल एक शाब्दिक नाम. 


बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि.

अर्थ : कबीर जी का कहना है की जिसे अपने शब्दों का महत्व पता है वह बिना शब्दों को तोले नहीं बोलता. कहते है कि कमान से छुटा तीर और मुंह से निकले शब्द कभी वापस नहीं आते इसलिए इन्हें बिना सोचे-समझे बोलना नहीं चाहिए. वक्त के साथ  जीवन में सभी घाव भर जाते है पर शब्दों के बाण जीवन को रोक देते है . इसलिए अपनी बोली पर नियंत्रण और मिठास का होना जरुरी है .


चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह,
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥

अर्थ : कबीर ने अपने इस दोहे में लोगो को समझाया हैं कि इस संसार में जिस शक्स को किसी को पाने की इच्छा हैं उसे उस चीज को पाने की ही चिंता हैं, अगर वह चीज उसे मिल जाती है तो उसे खो देने की चिंता होने लगती है. वो हर पल बैचेन रहते हैं जिसके पास खोने के लिए कुछ हैं लेकिन इस दुनियाँ में वही इंसान खुश हैं जिसके पास खोने और लुटने के लिए कुछ नहीं, उसे कुछ भी खोने का या कुछ भी लुटने का डर नहीं, और उसे कुछ पाने की लालसा नहीं, सही माईनो ऐसा व्यक्ति ही इस दुनियाँ का राजा हैं


माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय,
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥

अर्थ : बहुत ही अच्छी बात को कबीर दास जी ने बड़ी सहजता से कहा दिया . उन्होंने कुम्हार और उसकी कला को लेकर कहा हैं कि मिट्टी एक दिन कुम्हार से कहती हैं कि तू क्या मुझे कूट कूट कर आकार दे रहा हैं एक दिन आएगा जब तू खुद मुझ में मिल कर निराकार हो जायेगा अर्थात कितना भी कर्मकांड कर लो एक दिन मिट्टी में ही समाना हैं .


माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि लोग सदियों तक मन की शांति के लिये माला हाथ में लेकर ईश्वर की भक्ति करते हैं लेकिन फिर भी उनका मन शांत नहीं होता इसलिये कवी कबीर दास कहते हैं – हे मनुष्य इस माला को जप कर मन की शांति ढूंढने के बजाय तू दो पल अपने मन को टटौल, उसकी सुन देख तुझे अपने आप ही शांति महसूस होने लगेगी .


तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय . 
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥

अर्थ : कबीर दास कहते हैं जैसे धरती पर पड़ा तिनका आपको कभी कोई कष्ट नहीं पहुँचाता लेकिन जब वही तिनका उड़ कर आँख में चला जाये तो बहुत कष्टदायी हो जाता हैं अर्थात जीवन के क्षेत्र में किसी को भी तुच्छ अथवा कमजोर समझने की गलती ना करे जीवन के क्षेत्र में कब कौन क्या कर जाये कहा नहीं जा सकता .


गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय, 
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥

अर्थ : कबीर दास ने यहाँ गुरु के स्थान का वर्णन किया हैं वे कहते हैं कि जब गुरु और स्वयं ईश्वर एक साथ हो तब किसका पहले अभिवादन करे अर्थात दोनों में से किसे पहला स्थान दे ? इस पर कबीर कहते हैं कि जिस गुरु ने ईश्वर का महत्व सिखाया हैं जिसने ईश्वर से मिलाया हैं वही श्रेष्ठ हैं क्यूंकि उसने ही तुम्हे ईश्वर क्या हैं बताया हैं और उसने ही तुम्हे इस लायक बनाया हैं कि आज तुम ईश्वर के सामने खड़े हो .


सुख में सुमिरन सब करै दुख में करै न कोई,
जो दुख में सुमिरन करै तो दुख काहे होई

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं जब मनुष्य जीवन में सुख आता हैं तब वो ईश्वर को याद नहीं करता लेकिन जैसे ही दुःख आता हैं वो दौड़ा दौड़ा ईश्वर के चरणों में आ जाता हैं फिर आप ही बताये कि ऐसे भक्त की पीड़ा को कौन सुनेगा ?


साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय,
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

अर्थ : कबीर दास कहते हैं कि प्रभु इतनी कृपा करना कि जिसमे मेरा परिवार सुख से रहे और ना मै भूखा रहू और न ही कोई सदाचारी मनुष्य भी भूखा ना सोये . यहाँ कवी ने परिवार में संसार की इच्छा रखी हैं .


कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और, 
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

अर्थ : कबीर दास जी ने इस दोहे में जीवन में गुरु का क्या महत्व हैं वो बताया हैं . वे कहते हैं कि मनुष्य तो अँधा हैं सब कुछ गुरु ही बताता हैं अगर ईश्वर नाराज हो जाए तो गुरु एक डोर हैं जो ईश्वर से मिला देती हैं लेकिन अगर गुरु ही नाराज हो जाए तो कोई डोर नही होती जो सहारा दे .

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर 
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर 

अर्थ : कविवर कबीरदास कहते हैं मनुष्य की इच्छा, उसका एश्वर्य अर्थात धन सब कुछ नष्ट होता हैं यहाँ तक की शरीर भी नष्ट हो जाता हैं लेकिन फिर भी आशा और भोग की आस नहीं मरती .


बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर

अर्थ : कबीरदास जी ने बहुत ही अनमोल शब्द कहे हैं कि यूँही बड़ा कद होने से कुछ नहीं होता क्यूंकि बड़ा तो खजूर का पेड़ भी हैं लेकिन उसकी छाया राहगीर को दो पल का सुकून नही दे सकती और उसके फल इतने दूर हैं कि उन तक आसानी से पहुंचा नहीं जा सकता . इसलिए कबीर दास जी कहते हैं ऐसे बड़े होने का कोई फायदा नहीं, दिल से और कर्मो से जो बड़ा होता हैं वही सच्चा बड़प्पन कहलाता हैं .


ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।



FAQ


संत कबीर दास की शिक्षा क्या हैं ?
माना जाता है कि संत कबीर दास की शुरूआती शिक्षा उनको रामानंद जो उनके बचपन के गुरु थे, उन्होंने दी थी. कबीर ने उनसे अध्यात्मिक प्रशिक्षण को प्राप्त किया और बाद में वो उनके प्रसिद्ध प्रिय शिष्य बन गए. उनके बचपन के किस्से में यह माना जाता है कि रामानंद उन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे, लेकिन एक सुबह जब रामानंद स्नान करने जा रहे थे तब उस वक्त कबीर तालाब की सीढियों पर बैठ कर रामा रामा मंत्र का जाप कर रहे थे, अचानक रामानंद ने देखा कि कबीर उनके पैरों के नीचे है तब वो अपने आप को दोषी महसूस करते हुए उन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिए. व्यावसायिक रूप से उन्होंने कभी भी कोई कक्षाओं में जाकर अध्ययन नहीं किया, लेकिन रहस्यमयी रूप से वो बहुत जानकर व्यक्ति थे. उन्होंने व्रज, अवधि और भोजपुरी जैसी कई औपचारिक भाषाओं में दोहों को लिखा था.   


संत कबीर दास के विचार क्या हैं ?
कबीर दास पहले ऐसे संत है जिन्होंने हिन्दू धर्म और इस्लाम धर्म दोनों के लिए सार्वभौमिक रूप को अपनाते हुए दोनों धर्म का पालन किया. उनके अनुसार जीवन और परमात्मा का अध्यात्मिक सबंध है और मोक्ष के बारे में उन्होंने ये विचार व्यक्त किये कि जीवन और परमात्मा इन दो दिव्य सिद्धांत को यह एकजुट करने की प्रक्रिया है. व्यक्तिगत रूप से कबीर ने केवल ईश्वर में एकता का अनुसरण किया, लेकिन उन्होंने हिन्दू धर्म के मूर्ति पूजा में कोई विश्वास नहीं दिखाया. उन्होंने भक्ति और सूफी विचारों के प्रति विश्वास दिखाया. उन्होंने लोगों को प्रेरित करने के लिए अपने दार्शनिक विचारों को दिया.    


संत कबीर दास की आलोचना क्यों हुई ?
कबीर के द्वारा एक महिला मनुष्य के अध्यात्मिक प्रगति को रोकती है जब वह व्यक्ति के पास आती है तो भक्ति, मुक्ति और दिव्य ज्ञान उस व्यक्ति की आत्मा में समाहित नहीं हो पाते है, वह सब कुछ नष्ट कर देती है. जिसके लिए उनकी आलोचना की गयी है निक्की गुनिंदर सिंह के अनुसार कबीर की राय महिलाओं के लिए अपमानजनक और अवज्ञाकारी है. वेंडी दोनिगेर के अनुसार कबीर महिलाओं को लेकर एक मिथाक्वादी पूर्वाग्रह से ग्रसित थे.  


संत कबीर दास का जन्म, मृत्यु कब हुई ?
कबीर दास का जन्म सन 1440 में हुआ था और 1518 में इनकी मृत्यु हो गयी थी. कबीर दास के माता पिता के बारे में कोई जानकारी नहीं है हालाँकि ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म हिन्दू धर्म के समुदाय में हुआ था, लेकिन उनका पालन पोषण एक गरीब मुस्लिम परिवार के द्वारा किया गया था. जिस दम्पति ने उनका पालन किया था उनके नाम नीरू और नीमा थे, कबीर उन्हें वाराणसी के लहरतारा के छोटे से शहर में मिले थे. ये दम्पति बहुत ही गरीब मुस्लिम बुनकर होने के साथ ही अशिक्षित भी थे, लेकिन उन्होंने बड़े प्यार से कबीर को पाला था, वह उनके पास एक साधारण और संतुलित जीवन व्यतीत कर रहे थे. ऐसा माना जाता है कि संत कबीर का परिवार अभी भी वाराणसी के कबीर चौरा में रह रहा है.  


संत कबीर दास के कार्य क्या हैं ?
कबीर और उनके अनुयायियों ने अपनी मौखिक रूप से रचित कविता को बावंस कहा. कबीर दास की भाषा और लेखन की शैली सरल और सुन्दर है जो की अर्थ और महत्व से परिपूर्ण है. उनके लेखन में सामाजिक भेदभाव और आर्थिक शोषण के विरोध में हमेशा लोगों के लिए सन्देश रहता था. उनके द्वारा लिखे दोहे बहुत ही स्वभाविक है जो कि उन्होंने दिल की गहराई से लिखा था. उहोने बहुत से प्रेरणादायी दोहों को साधारण शब्दों में अभिव्यक्त किया था. कबीर दास के द्वारा कुल 70 रचनाये लिखी गयी है, जिनमे अधिकांशतः उनके दोहे और गानों के संग्रह है. कबीर निर्गुण भक्ति के प्रति समर्पित थे कबीर दास ने बहुत सी रचनायें की है जिनमे से उनके कुछ प्रसिद्ध लेखन है बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, सखी ग्रन्थ, सबदास, वसंत, सुकनिधन, मंगल, सखीस और पवित्र अग्नि इत्यादि है.


संत कबीर दास जयंती मनाने का तरीका क्या हैं ?
कबीर दास जयंती के अवसर पर कबीर पंथ के अनुयायी उस दिन कबीर के दोहे को पढ़ते है और उनसे शिक्षा से सबक लेते है. विभिन्न स्थानों पर सत्संग का आयोजन और बैठक करते है. इस दिन खास करके उनके जन्म स्थान वाराणसी के कबीर चौथा मठ में धार्मिक उपदेश आयोजित किये जाते है, साथ ही देश के अलग अलग भागों के विभिन्न मंदिरों में कबीर दास जयंती का उत्सव मनाया जाता है. कुछ जगह कबीर दास जयंती के अवसर पर शोभायात्रा भी निकली जाती है, जोकि एक विशेष स्थान से शुरू होकर कबीर मंदिर तक आ कर ख़त्म हो जाती है.


संत कबीर दास की उपलब्धि क्या हैं
कबीर दास की हर धर्म के व्यक्ति के द्वारा प्रशंसा कि जाती है उनकी दी हुई शिक्षा आज भी नई पीढ़ियों के लिए प्रासंगिक और जीवित है. उन्होंने कभी भी किसी धार्मिक भेदभाव पर विश्वास नहीं किया था इस तरह के महान कृत्यों के कारण ही उन्हें संत की उपाधि उनके गुरु रामानंद ने दी थी.              


संत कबीर दास का व्यक्तिगत जीवन क्या हैं ?
कुछ ने उप व्याख्यायित किया है कि कबीर ने कभी भी शादी नहीं की थी वो हमेशा अविवाहित जीवन ही व्यतीत किये थे, लेकिन कुछ विद्वानों ने साहित्य निष्कर्ष निकालते हुए ये दावा किया है कि कबीर ने शादी की थी, और उनकी पत्नी का नाम धारिया था. साथ ही उन्होंने ये भी दावा किया कि उनके एक पुत्र जिसका नाम कमल था और एक पुत्री भी थी जिसका नाम कमली था.  


संत कबीर दास जयंती कब है ?
संत कबीर दास की जयंती हिन्दू चन्द्र कैलेंडर के अनुसार जयंता पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, और ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह मई जून के महीनों में मनाया जाता है. संत कबीर दास जयंती एक वार्षिक कार्यक्रम है, जो प्रसिद्ध संत, कवि और सामाजिक सुधारक कबीर दास के सम्मान में मनाया जाता है. यह पुरे भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है.


No comments:

Post a Comment